Binayak Acharya (Odisha) – Freedom Fighters of India

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Binayak Acharya (Odisha) – Freedom Fighters of India

Binayak Acharya (Odisha) - Freedom Fighters of India by Learners Inside
Binayak Acharya (Odisha) – Freedom Fighters of India by Learrners Inside

परिचय

इस पोस्ट के माध्यम से आज हम लोग जानेंगे, महान स्वाधीनता सेनानी और ओडिसा के दिवंगत मुख्यमंत्री बिनायक आचार्य की। इनका जन्म 30 अगस्त 1918 को ओडिसा के बरहपुर में हुआ था। इन्हें प्यार से ओडिसा का अजातशत्रु कहा जाता है, जिसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो दोस्तों का ही नहीं दुश्मनों का भी दिल जीत ले।

खद्दरधारी बिनायक आचार्य सीधे – साधे और मृदुभाषी व्यक्ति थे।

बिनायक आचार्य ने भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस आंदोलन का बरहपुर पर बहुत प्रभाव पडा। उन्होंने ओडिसा के चहु-मुख्य विकास के सभी चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनके राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक योगदान की विशेष सराहना की जाती है। वे अपने हेड मास्टर पिता रघुनाथ आचार्य और समकालीन साहित्यकार रामचंद्र आचार्य से अत्यधिक प्रभावित थे।

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बिनायक – सरकारी नौकरी में अरुचि

विनायक स्वच्छंद प्रगति के व्यक्ति थे और ब्रिटिश शासन में सरकारी नौकरी करने में उनकी कभी कोई रूचि नहीं रही। इसलिए हिंजली कट में गैरसरकारी हाई स्कूल में नौकरी करने लगे। बाद में वे बरहपुर नगर निगम हाई स्कूल में सहायक शिक्षक नियुक्त हुए।

दृढता उनका प्रमुख गुण था और वे अपने क्षेत्र में बहुत विश्वसनीय और व्यावहारिक नेता थे। समाजवाद की तरफ आकर्षित विनायक आचार्य सच्चे गांधीवादी थे।

भारत छोडो आंदोलन के दौरान उन्होंने एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक जरूरी सूचना पहुंचाने के लिए संदेश वाहक का कार्य किया।

बिनायक आचार्य जी – शिक्षक के रूप में

बिनायक आचार्य ने ओडिसा की शैक्षिक प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अच्छे शिक्षक के रूप में लोकप्रिय थे। उन्हें बरहमपुर और गंजम जिले के ही नहीं बल्कि संपूर्ण ओडिसा के विद्यार्थी पसंद करते थे।

सभी उन्हें प्रेम से बीनू मास्टर कहते थे।

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समाज सुधारक

इस दौरान उन्होंने समाज के वंचित लोगों की सहायता के लिए नवोतकल सेवा संघ का गठन किया। उन्हीं की पहल से गरीब विद्यार्थियों के सहायता के लिए हरिदाखंडी मठ की स्थापना हुई।

उन्होंने दलित समाज के हित के लिए भी कार्य किये और उनके साथ भोजन करके नई परंपरा शुरू की।

विनायक आचार्य शिक्षा के विकास, देश की संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता और वर्गभेद के उन्मूलन के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहे।

1976 से 1977 तक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बिनायक आचार्य ने प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और पूरे प्रयास किए कि बच्चे स्कूल की पढाई बीच में ना छोडें।

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मृत्यु

11 दिसंबर 1983 को आचार्य का निधन हो गया लेकिन उनके कार्य आज भी प्रेरणा बने हुए हैं।

राष्ट्रहित में निस्वार्थ सेवाभाव के लिए बिनायक आचार्य लोगों के दिलों में आज भी जीवित है। समाज सुधारों के लिए उनका उत्साह लोगों को सदैव समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता रहेगा।

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जय हिंद जय भारत…!

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