पुली थेवर (Puli Thevar) – Freedom Fighters of India
इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे महान तमिल योद्धा पुली थेवर के बारे में।
संक्षिप्त परिचय
पुली थेवर का जन्मे 01 सितंबर 1715 को हुआ था। पुली थेवर शुरूआती दौर के उन लोगों में थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया। पुली थेवर तत्कालीन तमिल इलाके के 77 पोलिगन यानी स्थानीय सरदारों में से एक थे।
इस इलाके को आज तमिलनाडु में तिरुनेलवेली जिले के नेल कत्तुम सेवल (Nelkattumseval) इलाके के रूप में जाना जाता है। पुली थेवर वहाँ के बेहद शक्तिशाली योद्धा ये।
16 वीं सदी
16 वीं सदी के आखिरी दिनों में दक्षिण भारत के शक्तिशाली विजयनगरम साम्राज्य के विघटन के बाद पलयम का शासन कायम हुआ। इन नायकों और पॉलीगरों ने मुहर जागीदार आर. कार्ड के नवाब के अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। अपने इलाकों के वे स्वायत्तशासन रहे।
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पोल्गर विद्रोह
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब से कर वसूल करने का अधिकार हासिल किया तो पॉलीगरों ने ब्रिटिश अधिकार को भी मानने से इंकार कर दिया। जाहिर है की कंपनी इससे नाराज हो गई और इसे पोल्गर विद्रोह का नाम दिया।
कंपनी के साथ पॉलीगरों का युद्ध शुरू हो गया, जो करीब आधी सदी तक चला। उस दौर में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले महान पॉलिगन योद्धाओं में पुली थेवर प्रमुख योद्धा थे।
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पुली थेवर – ब्रिटिश सेना
ब्रिटिश सेना को पुली थेवर ने पहली बार 1755 में चुनौती दी। तब ब्रिटिश कर्नल अलेक्जेंडर हेरोन ने पश्चिमी तमिलनाडु पर हमला किया था। नेल कत्तुम सेवल में पुली थेवर के किले में ब्रिटिश तोपें नाकाम रही।
पुली थेवर ने अंग्रेज शिविरों की जासूसी कराई, जिससे उन्हें लगातार खुफिया जानकारी मिलती रही। बहादुरी से किले की रक्षा करने से पुली थेवर की प्रतिष्ठा बुलंदियों पर पहुंच गई और उसका असर ये हुआ कि पश्चिमी पोलिगनो ने उनका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। इससे पुली थेवर को विदेशी शासन के खिलाफ मजबूत किलाबंदी करने में मदद मिलीं।
पडोसी त्रावनकोर के महाराजा के साथ गठजोड के लिए थेवर ने अपने अनूठे कूटनीतिक कौशल का उपयोग किया। अंग्रेजी सेना 6 साल तक इस इलाके पर कब्जा नहीं सकी।
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नए आसामी की नियुक्ति – युसूफ खान
बाद में अंग्रेजों ने नए आसामी की नियुक्ति की। इस बीच वे फूट डालने की कोशिश भी करते रहे। इसका असर भी हुआ और पॉलीगरों का त्रावणकोर के साथ वह गठबंधन टूट गया।
जिस युसूफ खान को कंपनी सरकार ने आसामी बनाया, वो स्थानीय निवासी था और बाद में उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया था। युसूफ खान भले ही पॉलीगरों पर नियंत्रण करने में सफल रहा, लेकिन बाद में उसने खुद अंग्रेजों से विद्रोह कर दिया।
कई पॉलीगर भी उसके साथ आ मिले, उसने पुली थेवर के साथ भी संघर्ष किया, क्योंकि उसे पॉलीगरों का भी समर्थन मिलता रहा। लिहाजा पुली लगातार अपने इलाके खोते गए। त्रावनकोर की सेना भी युसूफ की सहयोगी बन गई। लिहाजा दोनों ने मिलकर पुली पर हमला किया। पुली थेवर ने इसका जमकर सामना किया, लेकिन वो अपने गढ नेल कत्तुम सेवल को नहीं बचा सके।
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पुली थेवर – जनता के हीरो
उन पराजय के बावजूद पुली थेवर तमिलनाडु की जनता के हीरो रहे। विशेष रूप से तिरुनेलवेली और आस पास के इलाकों के लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। तिरुनेलवेली का पुली थेवर पैलेस उनका मुख्यालय था वहीं उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम युद्ध भी यहीं लडा था।
मृत्यु
पुली थेवर की मृत्यु सन 1767 में हुई।
तिरुनेलवेल्ली में आज भी पूरे समर्पण और सम्मान के साथ हर साल पुली थेवर की जयंती मनाई जाती है।
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