Kanailal Dutta – Freedom Fighters of India

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Kanailal Dutta – Freedom Fighters of India

Story of Heroic Kanailal Dutta - Freedom Fighters of India by Learners
Story of Heroic Kanailal Dutta – Freedom Fighters of India by Learners Inside.

इस पोस्ट के माध्यम से आज हम लोग जानेंगे महान लेकिन भूले बिसरे क्रांतिकारी कलाई लाल दत्त (Kanailal Dutta) की।

परिचय

कलाई लाल दत्त का जन्म 31 अगस्त 1888 को अविभाजित बंगाल के चंदन नगर में हुआ था।

कन्हाईलाल दत्त राष्ट्रवादी जुबान तट समूह से जुडे थे जो उस समय भारत की स्वतंत्रता के लिए बंगाल में संचालित दो मुख्य और भूमिगत क्रांतिकारी संगठनों में से एक था। कन्हाईलाल ने 20 वर्ष कि युवावस्था में ही मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

कन्हाईलाल दत्त – बम धमाका घटना

कन्हाईलाल दत्त को मुजफ्फरपुर बम हमले में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने 1908 में गिरफ्तार किया था। उनके साथ कम से कम 40 क्रांतिकारी भी पकडे गए थे।

कुछ महीने बाद दत्त और उनके मित्र सत्येंद्रनाथ बोस को नरेंद्रनाथ गोसाई की हत्या का दोषी ठहराया गया। गोसाई पहले क्रांतिकारी था लेकिन बाद में वो अंग्रेजों से मिलकर सरकारी गवाह बन गया था।

गोसाई की गवाही के कारण ही ब्रिटिश पुलिस ने अनेक स्वाधीनता सेनानियों के नाम आरोपपत्र तैयार किए। इसका बदला लेने के लिए सत्येंद्रनाथ और कन्हाईलाल ने जेल में ही गोसाई को गोली मार थी।

नरेन्द्रनाथ की हत्या को लेकर जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष कन्हाईलाल ने स्पष्ट बयान दिया। नरेंद्रनाथ की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह गद्दार था।

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निडर चरित्र – कलाई लाल दत्त

हादसे के एक दिन पहले ब्रिटिश जेल के वार्डन ने कन्हाईलाल को मुस्कुराती देखकर कहा – कल जब फांसी पर लटकाया जाएगा तो तुम्हारी ये मुस्कान गायब हो जाए।

तुम्हारी ये मुस्कान गायब हो जाएगी। अगली सुबह भी कन्हाईलाल मुस्कुरा रहे थे। दत्त की निर्भिकता देखकर वार्डन अवाक रह गया। 10 नवंबर 1908 की सुबह कन्हाईलाल को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दे दी गई।

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सी कस्टम्स एक्ट, 1878

कन्हाईलाल के बलिदान के करीब 15 साल बाद मोतीलाल रॉय ने उनकी स्मृति में चंदननगर कस्बे से बांग्ला भाषा में पुस्तक प्रकाशित की। उस समय चंदननगर फ्रांस के कब्जे में था। लेकिन अंग्रेजों ने सी कस्टम्स एक्ट, 1878 (Sea Customs Act, 1878) के तहत उस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया। इस अधिनियम में ब्रिटिश क्षेत्रों में भेजी जा रही किसी भी आपत्तिजनक सामग्री को प्रतिबंधित करने का प्रावधान था।

इस पुस्तक में मोतीलाल ने उन पलों को याद किया था जब उन्होंने अंतिम संस्कार के समय कन्हाईलाल के पार्थिव शरीर के दर्शन किये थे। उन्होंने पुस्तक में लिखा था कि कन्हाईलाल के चेहरे पर योगी जैसी शांति थी और उनके शरीर पर कोई भी ऐसा निशान नहीं था जिससे मृत्यु के समय भय का पता चलता हो।

कन्हाईलाल की फांसी की लोगों के बीच खूब चर्चा हुई। देश के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने के कारण वे जनमानस में बस गए।

राष्ट्रसेवा के लिए कन्हाईलाल के उत्साह ने बाघा जतिन रासबिहारी बोस, मास्टर दा सूर्यसेन और उनके समूह के सदस्य सहित अनेक महान बंगाली क्रांतिकारियों के दिलों में आजादी के जो वाला और तेज कर दी। कन्हाईलाल दत्त जैसे शहीदों के बलिदान और अप्रतिम देश सेवा का हम सभी लोग सदैव ऋणी रहेंगे।

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जय हिंद जय भारत…!

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