क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त – भारत के स्वतंत्रता सेनानी की कहानी
परिचय
महान स्वाधीनता सेनानी और क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था। दत्त का बचपन उत्तर प्रदेश के कानपुर में बीता और वहीं उन्होंने पढाई की।
पृष्ठभूमि
क्रांतिकारी के रूप में उनका जीवन किशोरावस्था से भी पहले शुरू हो गया था जब उन्होंने कानपुर की माल रोड पर अंग्रेजों को एक भारतीय बच्चे की बेरहमी से पिटाई करते देखा। वो बच्चा सडक पर घूम रहा था जो भारतीयों के लिए प्रतिबंधित था।
इस घटना नहीं बटुकेश्वर दत्त पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशक शासन के विरुद्ध गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। प्रताप के संपादक सुरेश चंद्र भट्टाचार्य के माध्यम से दत्त सचिन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों क्रांतिकारियों के संपर्क में आए जो हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सहसंस्थापक थे।
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बटुकेश्वर दत्त और भगत की सिंह दोस्ती
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह उसी समय रिवोल्युशनरी पार्टी में शामिल हुए। कानपुर में रहने के दौरान उनकी दोस्ती गहरी होती गई।
दत्त ने बंगला भाषा सीखने में भी भगत सिंह की सहायता की और काजी नजरूल इस्लाम की कविता से उनका परिचय कराया जिसे वे अक्सर गाते थे।
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बटुकेश्वर दत्त – योगदान
08 अप्रैल 1929 को ट्रेड डिस्प्यूट्स और पंजाब सेफ्टी बिल्स के विरोध में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने संत्र असली में धुएँ की बम फेंके और निर्भिकता से इन्कलाब जिंदाबाद और सामना जवास का नाश हो जैसे नारे लगाए हैं।
बटुकेश्वर दत्त को असम में बम केस में आजीवन कारावास की सजा हुई और अंडमान की सेल्यूलर जेल भेज दिया गया। वहाँ उन्होंने राजनीतिक कैदियों के अधिकारों के लिए दो बार भूख हडताल की।
बाद में 1937 में उन्हें सेल्यूलर जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। वहाँ से दत्त को दिल्ली जेल और अंत में पटना जेल भेजा गया।
दत्त को 08 सितंबर 1938 को रिहा किया गया क्योंकि कई बीमारियों के कारण उनकी हालत बिगडने लगी थी। दत्त को इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे किसी तरह कि हिंसक राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। हिंसा को बढावा देने वाले किसी राजनीतिक संगठन से नहीं जुडेंगे।
रिहा होने पर जब उनकी सेहत ठीक होने लगी तो दत्त एक बार फिर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।
बटुकेश्वर दत्त ने 1942 में भारत छोडो आंदोलन में भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 1947 में रिहा किया गया।
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निधन
20 जुलाई 1965 को दिल्ली में कैंसर से बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु हो गई। भगत सिंह की 85 वर्ष की माताजी अक्सर अस्पताल में बटुकेश्वर दत्त को देखने जाती थीं।
दस्त के इच्छा के अनुसार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के स्मारक के पास ही उनका अंतिम संस्कार किया गया।
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