Netaji Subhash Chandra Bose in Hindi – Freedom Fighters of India
18 अगस्त के दिन 1945 में समाचार मिला कि नेताजी जिस विमान से जा रही थी वो ताइवान में ताई हू को हवाई अड्डे के निकट दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उन्होंने नजदीकी जापानी स्टेशन अस्पताल में चोट के कारण दम तोड़ दिया।
पृष्ठभूमि
सुभाषचंद्र बोस, भारत की स्वाधीनता संघर्ष की सबसे बहादुर हस्तियों में से एक हैं। सुभाष चंद्र बोस को प्यार से नेताजी कहा जाता था उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1919 में स्नातक शिक्षा प्राप्त की और 1921 में इंडियन सिविल सर्विसेस परीक्षा उत्तीर्ण की।
“कहा जाता है कि बाद को लंबे समय तक पिंजरे में कैद नहीं रखा जा सकता।”
सिविल सेवा से त्यागपत्र
आजाद ख्याल के सुभाषचंद्र बोस ने चितरंजन दास से प्रभावित होकर सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने अंग्रेजों की दासता करने की बजाए अपने देश की आजादी के लिए कार्य करने का रास्ता चुना।
सुभाष ने स्वराज का समर्थन किया। उनका विचार था कि ‘आजादी दी नहीं जाती बल्कि ली जाती है’ इसलिए उन्होंने अपनी मातृभूमि को विदेशियों के चंगुल से मुक्त कराने की रणनीति बनाई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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1939 के बाद का सफर
1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के बाद नेताजी ने जन आंदोलन शुरू किया। इसके तहत उन्होंने देश भर की लोगों को एक जुट करना शुरू कर दिया। सुभाष की अपील पर लोगों ने जबरदस्त उत्साह दिखाया। इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया।
बोस घर में नजरबंद कर किए गए। इस दौरान उन्होंने नाटकीय ढंग से वहां से निकलने की योजना बनाई। उन्होंने दाढ़ी बढ़ा ली ताकि अंग्रेज उन्हें पहचान न सकें और वे पठान के वेश में घर से निकल गई।
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विदेशों में गतिविधियां
19 जनवरी 1941 की रात बोस पहले बिहार गए। वहां से पेशावर के रास्ते काबुल मॉस्को और रूम होते हुए आखिरकार जर्मनी पहुंचे। जर्मनी में उनकी मुलाकात हिटलर से हुई। उन्होंने बर्लिन में ‘फ्री इंडिया सेंटर’ की स्थापना की और ‘आजाद हिंद रेडियो’ की शुरुआत की।
सुभाषचंद्र बोस – आजाद हिंद फौज
इंडियन नेशनल आर्मी का गठन भारत की स्वतंत्रता के लिए सितंबर 1942 में रासबिहारी बोस द्वारा सशस्त्र युद्ध के उद्देश्य से किया गया था लेकिन जल्द ही इसे भंग कर दिया गया। 1943 में सुभाष चन्द्र पोस्ट इंडियन नेशनल आर्मी (आई. एन. ए.) यानी आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमांडर बने थे।
1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस में दक्षिणपूर्व एशिया में अपने आगमन के बाद इसे पुनर्जीवित किया। 1943 के प्रारंभ में बोस ने ये महसूस किया कि दक्षिणपूर्व एशिया अंग्रेजों से लडने और उपनिवेशवाद विरोधी सेना की स्थापना के लिए उपयुक्त था जहां बडी संख्या में भारतीय विदेश में रह रहे थे।
जनवरी 1943 में जापानियों ने बोस को पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया। सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे जिनका ये मानना था कि भारत को मुक्त कराने का एकमात्र तरीका सशस्त्र संघर्ष है।
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नेताजी ने गांधी, नेहरू और मौलाना आजाद के नाम पर आजाद हिंद फौज की रेजिमेंट के नाम रखे। आजाद हिंद फौज में एक रेजिमेंट ऐसी भी थी जिसमें केवल महिलाएं थीं। इसका नाम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के नाम पर रखा गया।
नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज में युद्धबंदी और हजारों आम नागरिक शामिल हुए। बोस जापानी सेना की सहायता से ब्रिटिश साम्राज्य से लड़कर भारत को आजाद कराना चाहते थे।
नेताजी के नेतृत्व में आई.एन.ए. ने दक्षिणपूर्व एशिया में रह रहे भारतीयों में से पूर्व कैदियों और हजारों नागरिक स्वयंसेवकों को आकर्षित किया।
जब ब्रिटिश सेना ने मलय प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया तो बोस ने समर्पण न करने का फैसला किया और सोवियत संघ के समर्थन के साथ मंचूरिया से लड़ाई जारी रखने की योजना बनाई। मंचूरिया जाते समय ही उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
आई.एन.ए. का सशस्त्र प्रतिरोध और उनका बलिदान हमेशा के लिए जनमानस की स्मृति में अंकित है।
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बोस की मृत्यु के बारे में विवाद
माना जाता है कि नेताजी का अंतिम संस्कार किया गया और उनकी अस्थियां टोक्यो की रिको जी मंदिर में रखी गई। हालांकि इस बारे में भी विवाद है कि मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की हैं या नहीं।
इसके कारण कई तरह की धारणाएं बनी और माना गया कि शायद सुभाष इस हादसे में बच गई हो। गांधीजी ने नेताजी को देश भक्तों का देश भक्ति कहा था। नेताजी की आवाज आज भी लोगों के दिलों में देश भक्ति का संचार कर देती है।
कुछ बुनियादी प्रश्न
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था – 23 जनवरी 1897
सुभाष चंद्र बोस का जन्म कहां हुआ था – कटक, उड़ीसा
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इंडियन सिविल सर्विसेस परीक्षा कब उत्तीर्ण की – 1921
सुभाष चंद्र बोस की स्नातक शिक्षा कहां से हुई थी – 1919 (कलकत्ता विश्वविद्यालय)
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