Madan Lal Dhingra UPSC in Hindi – Freedom Fighters of India

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Madan Lal Dhingra UPSC in Hindi – Freedom Fighters of India

About Madan Lal Dhingra UPSC in Hindi - Freedom Fighters of India
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पृष्ठभूमि – स्वतंत्रता संग्राम 1905

स्वाधीनता आंदोलन की लहर बंगाल के विभाजन के विरोध में आरंभ हुई थी और फिर धीरे धीरे इसमें संपूर्ण आजादी की मांग का रूप ले लिया।

भारतीय ने महसूस किया कि व्यापारी के रूप में आये कुछ विदेशियों ने हम पर फूट डालकर शासन करना शुरू कर दिया है। इस धरती के धन को उन्होंने योजना बद्ध तरीके से लूटा

वे लोग जो अपने व्यापार के लिए हम पर निर्भर थे। हमारे लघु और कुटीर उद्योगों को कुचलने लगे और यहाँ के लोगों से गुलाम की तरह व्यवहार करने लगे। स्वाभाविक था इसका समुचित जवाब दिया जाए। लोगों ने इस दमन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और देश छिटपुट विरोध प्रदर्शनों का साक्षी बनने लगा।

स्वाधीनता सेनानियों और नायकों के खिलाफ अंग्रेजों की क्रूर व्यवहार ने युवाओं को उत्तेजित कर दिया। ऐसे ही एक युवा थे मदन लाल ढींगरा

मदन लाल ढींगरा – युवा स्वतंत्रता सेनानी

मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था । लाहौर में सरकारी कॉलेज में पढते हुए वे स्वराज के लिए जारी राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हुए जो स्वराज के लिए चलाया जा रहा था । ढींगरा भारत की गरीबी से अत्यधिक दुखी थे । उन्हें लगता था कि गरीबी का समाधान स्वराज और स्वदेशी में ही है।

ढींगरा ने 1904 में विद्यार्थियों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। दरअसल उनके प्रिंसिपल ने आदेश दिया था कि कॉलेज के लिए ब्लेजर ब्रिटेन से आयातित कपडों से ही बनाया जाए। ढींगडा ने छात्रों के साथ इसका विरोध किया और इसके बाद उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया । इस घटना ने ढींगडा को प्राधिकारी राष्ट्रवाद के करीब ला दिया।

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मदन लाल ढींगरा – विदेशों में गतिविधियां

1905 में ढींगरा लंदन चले गए और वहाँ इंडिया हाउस में ठहरे। इंडिया हाउस उत्तरी लंदन में स्थित विद्यार्थियों का निवास स्थान था।

वकील श्यामजी कृष्ण वर्मा के संरक्षण में इसे ब्रिटेन में रह रहे भारतीय विद्यार्थियों में राष्ट्रवादी विचारों को प्रोत्साहन देने के लिए खोला गया था। इंडिया हाउस में ही मदन लाल ढींगरा की मुलाकात वीरसावरकर से हुई। सावरकर तब इंडिया हाउस के प्रबंधक थे।

इस बीच 8 जून 1909 को वीर सावरकर के बडे भाई बाबा राओ गणेश सावरकर को देश निकाला दिया गया। सरकारी पक्ष केवल ये सिद्ध कर सका की उन्होंने ऐतिहासिक कविताएं प्रकाशित की थी, जिसे राजद्रोह माना गया। बाबाराव सावरकर को मिले देश निकाले से लंदन में रह रहे क्रांतिकारी उत्तेजित हो गए।

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उस समय सीक्रेट पुलिस के विलियम हर्ड कर्नल वाइली, सावरकर और क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहे थे। कर्नल वाइली के कारण ही लंदन में क्रांतिकारी स्वाधीनता सेनानियों को निशाना बनाया गया। श्यामजी कृष्ण वर्मा की जनरल ‘दी इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ में वाइली को भारत का पुराना बेरहम शत्रु कहा गया।

01 जुलाई 1909 को ढींगरा एक जनसभा में शामिल हुए। इम्पीरियल इंस्टिट्यूट में इस कार्यक्रम को नेशनल इंडियन एसोसिएशन ने आयोजित किया था। इसमें ब्रिटिश अधिकारी विलियम हर्ट कर्जन वाइली भी मौजूद था। बैठक के बाद जब लोग लौटने लगे तो ढींगरा ने बेहद करीब से कर्नल वाइली पर गोली चला दी।

ढींगडा तुरंत गिरफ्तार कर लिए गए। मुकदमे के दौरान उन्होंने अपने बचाव में खुद ही जिर्ह की। ढींगरा ने तर्क दिया कि कर्जन वाइली को गोली मारना देश भक्ति का कार्य है। उन्होंने ये भी कहा कि वाइली की हत्या भारतीयों की अमानवीय हत्या का बदला है लेकिन अदालत ने उनकी दलील नामंजूर कर दी और उन्हें मौत की सजा सुना दी गई।

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मदन लाल ढींगरा – फांसी

पेंट्रोल मिले जेल में 17 अगस्त 1909 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। मदनलाल ढींगडा संपन्न परिवार के थे लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था।

उन्होंने देशवासियों के साथ अन्याय का बदला लेने को लिए प्राथमिकता दी। वह अच्छी तरह जानते थे कि बदली की कार्यवाही से उनके लिए अनेक मुसीबतें खड़ी होंगी लेकिन उन्होने अपनी राह नहीं बदलीं।

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ब्रिटिश सेना की भारत से वापसी

1947 में भारत की आजादी के बाद ब्रिटिश सेना की वापसी की शुरुआत हुई थी। 17 अगस्त को करीब 90 साल के ब्रिटिश राज के बाद इसी दिन ब्रिटिश सेना ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स की विशाल कैंटीन जेट बम्बई से रवाना हुई।

ब्रिटिश सेना को पूरी तरह से भारत छोडने में तो समय लगा और फरवरी तक ही ये काम पूरा हो सका। ब्रिटिश सेना कि आखिरी कुमुक कि भारत भूमि से जवान की प्रतीक थी।

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जय हिंद जय भारत…!

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